कई अन्य राज्यों की भांति केरल में भी हर पांच साल में सत्ता बदल जाती है, लेकिन इस बार माकपा के नेतृत्व वाले लेफ्ट डेमोक्रेटिक फ्रंट (एलडीएफ) को उम्मीद है कि यह सिलसिला टूट सकता है। फ्रंट को दोबारा सत्ता में आने की पूरी उम्मीद है। एलडीएफ का यह भरोसा यूं ही नहीं है, बल्कि इसके पीछे कई कारण भी हैं। वामंपथी नेता ऐसे कम से कम चार कारण बताते हैं, जिसकी वजह से राज्य में उनका पलड़ा भारी बना हुआ है। राज्य में हाल में हुए निकाय चुनावों में 70 फीसदी सीटें एलडीएफ को मिलीं। यह पहली बार हुआ है, जब किसी भी सत्तारूढ़ दल को इतनी सीटें मिली हों। वरिष्ठ माकपा नेता प्रकाश करात कहते हैं कि जब हम विपक्ष में होते थे तो इतनी सीटें जीत लेते थे, लेकिन सत्ता में रहते हुए इतनी सीटें जीतना सरकार पर जनता के भरोसे को दर्शाता है। ये चुनाव हाल में ही हुए हैं।
कांग्रेस राज्य में आंतरिक कलह से जूझ रही
दूसरा, प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेस राज्य में आंतरिक कलह से जूझ रहा है। दो बार मुख्यमंत्री रह चुके ओमान चांडी अब ज्यादा सक्रिय नजर नहीं आते हैं। हालांकि, निकाय चुनावों में खराब प्रदर्शन के बाद विधानसभा चुनावों की तैयारियों के लिए कांग्रेस ने चांडी के नेतृत्व में एक समिति बनाई है, लेकिन यह संकेत भी दे दिए हैं कि विधानसभा चुनाव में किसी को मुख्यमंत्री प्रोजेक्ट नहीं किया जाएगा। विपक्ष की तरफ से मुख्यमंत्री का चेहरा पेश नहीं करना एलडीएफ के लिए फायदेमंद हो सकता है।
तमाम कवायद के बावजूद भाजपा पैर नहीं जमा पा रही
तीसरा प्रमुख कारण यह है कि तमाम प्रयासों के बावजूद केरल में भाजपा पैर नहीं जमा पा रही है। केरल में लंबे समय से भाजपा पैर पसारने की कोशिश कर रही है, लेकिन उसके प्रयास सफल नहीं रहे हैं। निकाय चुनावों का प्रदर्शन इसका प्रत्यक्ष प्रमाण है। जबकि पश्चिम बंगाल में उसने पिछले पांच सालों में अपने को काफी मजबूत कर लिया है।
कोरोना से प्रभावी तरीके से निपटे
चौथा, कारण यह है कि कोरोना संकट से केरल बुरी तरह से जूझ रहा है। कोरोना की पहली लहर का उसने प्रभावी मुकाबला किया और स्थिति काबू में आ गई। अब दूसरी लहर का सामना कर रहा है। इस दौरान केरल के मजबूत सरकारी स्वास्थ्य तंत्र ने लोगों को जरा भी परेशानी नहीं होने दी। सरकार से जुड़े एक जानकार ने कहा कि केरल में कोरोना के किसी मरीज को निजी अस्पताल में जाने की जरूरत नहीं पड़ रही है क्योंकि सरकार सेवाएं ग्रामीण स्तर तक मजबूत हैं। यह प्रबंधन भी सरकार को चुनावों में लाभ पहुंचाएगा।