पूर्व सीजेआई के नेतृत्व में एक संविधान बेंच ने 28 सितंबर को यह घोषणा की थी कि सभी उम्र की महिलाओं को केरल के सबरीमाला मंदिर में प्रवेश की अनुमति दी जाए.
भारत के 45वें प्रधान न्यायाधीश के रूप में अपना कार्यकाल पूरा करने के बाद रिटायर्ड जस्टिस दीपक मिश्रा ने एक बार फिर से लैंगिक समानता को लेकर आवाज़ बुलंद की है. मिश्रा ने कहा कि महिलाओं का सम्मान किया जाना चाहिए और उन्हें मंदिरों में प्रवेश करने से रोका नहीं जाना चाहिए’.
पूर्व सीजेआई के नेतृत्व वाली संविधान बेंच ने 28 सितंबर को आदेश दिया था कि केरल के प्रसिद्ध सबरीमाला मंदिर में सभी उम्र की महिलाओं को प्रवेश की अनुमति दी जाए.
लैंगिक समानता की पुरजोर वकालत करने के अलावा, पूर्व सीजेआई ने अपने कार्यकाल में कई ऐतिहासिक फैसले भी दिए. एक तरफ जहां उन्होंने एडल्ट्री के 158 साल पुराने कानून को खत्म किया तो वहीं डेटा प्राइवेसी की चिंताओं के बीच आधार की संवैधानिक वैधता को भी बरकरार रखा.
हिंदुस्तान टाइम्स लीडरशिप समिट 2018 को संबोधित करते हुए पूर्व सीजेआई ने कहा कि ‘महिलाएं जीवन में समान भागीदार हैं’.
हालिया पब्लिश एक आर्टिकल में पूर्व सीजेआई को जेंडर जस्टिस का वॉरियर बताया गया था. इस लेख को लेकर उन्होंने कहा कि घर वही कहलाता है जहां महिलाओं का सम्मान होता है. एक औरत की जीवन में बराबर की भागीदारी है.