लोक सेवा आयोग की पीसीएस परीक्षा के पैटर्न और पाठ्यक्रम में बदलाव का असर इसके परिणाम पर भी दिखने लगा है। बदलाव के बाद पिछले वर्ष घोषित पीसीएस 2018 के परिणाम से इसके संकेत तो मिले ही थे, 2019 का परिणाम भी इसकी पुष्टि करता नजर आ रहा है। पीसीएस का परिणाम भी संघ लोक सेवा आयोग की सिविल सेवा परीक्षा यानी आईएएस के जैसा हो गया है।
मेरिट में वैकल्पिक विषय को आधार बनाकर परंपरागत तैयारी करने वालों का प्रतिनिधित्व कम हो रहा है।
मेरिट में नई उम्र के उन लोगों को स्थान मिल रहा है, जिन्होंने परंपरागत तरीका छोड़ पैटर्न और पाठ्यक्रम में हुए बदलाव के मुताबिक खुद को बदल लिया है। यकीन न हो तो 2018 और 2019 की मेरिट सूची देख लीजिए। इस सूची में अब परंपरागत तैयारी करने वाले पूर्वांचल के प्रतियोगियों के साथ ही पश्चिमी यूपी और दूसरे राज्यों के मेधावी भी स्थान बनाने लगे हैं। पीसीएस के पिछले 13 परिणामों में 2014 को छोड़ बाकी 12 परिणामों में आयोग ने मेरिट सूची घोषित की थी।
आठ परिणामों में टॉपर पूर्वांचल के जिलों के रहे। टॉप-10 में भी पूर्वांचल के उन मेधावियों की अधिकता रही, जिन्होंने वैकल्पिक विषय के सहारे अपनी नइया पार लगाई। सिविल सेवा कोच नवीन पंकज कहते हैं कि पैटर्न और पाठ्यक्रम में बदलाव के बाद अब वैकल्पिक विषय का महत्व कम हो गया है। पीसीएस परीक्षा भी आईएएस की तरह ज्यादा व्यावहारिक हो गई है, इसलिए अब मेरिट में मथुरा, कांशीराम नगर जैसे पश्चिम के जिलों के मेधावियों के साथ ही हरियाणा, बिहार और दिल्ली के वे प्रतियोगी स्थान पा रहे हैं, जो प्रांतीय प्रशासनिक सेवा के साथ ही सिविल सेवा परीक्षा यानी आईएएस की भी तैयारी कर रहे हैं। पैटर्न और पाठ्यक्रम में बदलाव के पीछे सोच भी यही थी कि प्रतियोगियों को दो तरीके से तैयारी न करनी पड़े। सफलता पाने के लिए प्रतियोगियों को बदलाव के अनुसार बदलना ही होगा।
प्रतियोगी छात्र संघर्ष समिति के अध्यक्ष अवनीश पांडेय इस बात से सहमत हैं कि पैटर्न और पाठ्यक्रम में बदलाव के कारण पीसीएस का परिणाम बदला है। बकौल अवनीश इसकी एक और बड़ी वजह पैटर्न और पाठ्यक्रम में बदलाव के बावजूद कॉपियों के मूल्यांकन की प्रक्रिया में बदलाव न होना है। अभी हिन्दी और अंग्रेजी माध्यम के छात्रों की कॉपियां अलग-अलग मूल्यांकित नहीं कराई जा रही हैं। इसका सीधा नुकसान हिन्दी माध्यम के छात्रों को हो रहा है। परिणाम के प्रति असंतोष की यह भी एक बड़ी वजह है।