मुरादाबाद| बावनखेड़ी कांड एक बार फिर चर्चा में है। शबनम को फांसी देने की तैयारियां शुरू हो चुकी हैं। चर्चित बावनखेड़ी कांड पुलिस एकेडमी के पाठ्यक्रम में भी शामिल है। डाक्टर भीमराव अंबेडकर पुलिस एकेडमी में पुलिस कर्मी कानून की पढ़ाई के साथ-साथ बावनखेड़ी की खलनायिका की करतूत को भी पढ़ते हैं। पुलिस ने मात्र 72घंटे की विवेचना के अंदर कातिलों को जेल भेज दिया था। विवेचना में तत्कालीन विवेचक ने क्या-क्या सबूत जुटाए थे। उन्हीं तथ्यों के आधार पर शबनम और उसके प्रेमी सलीम को फांसी की सजा हो सकी है।
14 अप्रैल 2008 की रात अमरोहा के हसनपुर स्थित बावनखेड़ी में शौकत का पूरा परिवार खाना खाने के बाद सोने चला गया था। शबनम भी घरवालों को खाना खिलाने के बाद सोने चली गई। उसी रात उस घर पर मौत का कहर बरपा। जब सुबह लोग जागे तो शौकत के घर का मंजर खौफनाक था। हर तरफ लाशें बिखरी हुई थीं। माता-पिता समेत सात लोगों की हत्या की जा चुकी थी। सिर्फ शबनम जिंदा बची थी। शबनम ने पुलिस को बताया था कि घर में बदमाशों ने धावा बोलकर सबको मार डाला है। हमलावर छत के रास्ते आए थे। तत्कालीन इंस्पेक्टर हसनपुर आरपी गुप्ता ने जांच शुरू की। शबनम के मोबाइल फोन की कॉल डिटेल निकलवाई तो शबनम ने तीन महीने में एक नंबर पर नौ से ज्यादा बार फोन किया था।
पुलिस ने उस नंबर की जांच की तो पाया कि वो नंबर गांव में आरा मशीन चलाने वाले सलीम का था। पुलिस ने सीडीआर को जांचने के बाद पाया कि घटना की रात शबनम और सलीम के बीच 52 बार फोन पर बातचीत हुई थी। शबनम के चेहरे पर परिवार के सात लोगों की हत्या का खौफ भी नहीं था। इंस्पेक्टर आरपी गुप्ता ने 72 घंटे तक बारीकी से जांच करते हुए सबूत एकत्र किए थे। इसके बाद उन्होंने शबनम और सलीम को गिरफ्तार कर केस का पर्दाफाश कर दिया था। सर्वश्रेष्ठ विवेचना की तत्कालीन डीजीपी ने भी सराहना की थी। इसके बाद ही बावनखेड़ी कांड को पुलिस के पाठ्यक्रम में भी शामिल किया गया था। करीब दस सालों से डाक्टर भीमराव अंबेडकर पुलिस अकादमी में प्रशिक्षु पुलिस कर्मी कानून की पढ़ाई के साथ-साथ शबनम की करतूत के बारे में भी पढ़ते हैं। आदर्श विवेचना के रूप में विवेचक ने क्या-क्या सबूत जुटाए थे। किन-किन सबूतों के आधार पर लोअर कोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक सबूत को बहस के दौरान काटा नहीं जा सका। आखिरकार शबनम और सलीम को फांसी की सजा सुना दी गई। अब शबनम को फांसी दिए जाने की तैयारियां शुरू होने से एक बार फिर से बावनखेड़ी नरसंहार चर्चा में आ गया है।
शबनम और सलीम ने अपना गुनाह कुबूल करते हुए बताया था कि सलीम ने शबनम को जहर लाकर दिया था। 14 अप्रैल 2008 की रात शबनम ने रात में खाने के बाद घरवालों की चाय में मिला दिया था। सभी घरवालों ने चाय पी। इसके बाद वे सब एक-एक कर मौत के मुंह में समाते चले गए। इसके बाद शबनम ने फोन कर सलीम को अपने घर बुलाया। सलीम कुल्हाड़ी लेकर वहां आया था। उसने वहां आकर शबनम के सब घरवालों के गले काट डाले। यही नहीं वहां मौजूद शबनम के दस वर्षीय भांजे को भी गला घोंट कर मार डाला था। जहर की पुष्टि बाद में सभी मृतकों की पोस्टमार्टम रिपोर्ट में भी हुई थी। सभी शवों के पेट में जहर पाया गया था।
कत्ल से सजा तक की खास बातें
– 100 तारीखों तक चली जिरह
– 29 गवाहों ने दिए थे शबनम-सलीम के खिलाफ बयान
– 27 महीने तक चली थी केस की सुनवाई
– 14 जुलाई 2010 शबनम और सलीम दोषी करार दिए गए
– 15 जुलाई 2010 को दोनों को सुनाई गई फांसी की सजा
– 29 सेकेंड में जिला जज ने सुनाई थी फांसी की सजा
– 29 लोगों की हुई गवाही पर सुनाया था फैसला
– 649 सवाल किए गए थे गवाहों से
– 160 पन्नों में दर्ज है सजा की दास्तान
– 03 जिला जजों के कार्यकाल में पूरी हुई सुनवाई