पश्चिम बंगाल के चुनावी समर में वामदल और कांग्रेस मिलकर चुनाव लड़ने पर तो सहमत हो चुके हैं लेकिन सीटों के बंटवारे की प्रक्रिया इस महीने के अंत तक होने की संभावना है। पिछले चुनाव में बेहद खराब प्रदर्शन करने वाले वामदल इस बार बेहद सतर्क हैं। वह हर सीट का आवंटन मौजूदा परिस्थतियों के अनुसार राजनीतिक समायोजन (पॉलिटिकल एडस्टमेंट) के आधार पर करने के पक्ष में हैं। ताकि चुनाव को दो ध्रुवीय नहीं बल्कि त्रिकोणीय बनाया जा सके। आमतौर पर सीटों के आवंटन में दलों के पिछले प्रदर्शन को आधार बनाकर बंटवारा किया जाता है।
पश्चिम बंगाल के चुनावी समर में वामपंथी दल फूंक-फूंक कर कदम रख रहे हैं। चुनावी रण में तृणमूल और भाजपा आमने-सामने नजर आ रहे हैं जिसने वामपंथी दलों की चिंता बढ़ा दी है। वाम दलों की सोच है कि न तो तृणमूल को बहुमत मिलेगा क्योंकि उसके खिलाफ सत्ता विरोधी लहर है। जबकि भाजपा की जो स्थिति नजर आ रही है वह वास्तव में है नहीं। इसलिए वाम कांग्रेस-गठबंधन बेहतर प्रदर्शन को लेकर प्रयासरत है।
वामपंथी नेता अतुल कुमार अंजान के अनुसार उनकी लड़ाई भाजपा की नीतियों एवं ममता के अधिनायकवाद के खिलाफ है। पार्टी दोनों के खिलाफ लड़ने के लिए तैयार है। लेकिन इसके लिए जरूरी है कि गठबंधन के तहत सीटों का आवंटन बेहद समझदारी से हो। वे कहते हैं कि हर सीट पर यह सुनिश्चित किया जाएगा कि जिस दल के उम्मीदवार को उतारा जा रहा है, क्या वह चुनाव को त्रिकोणीय बनाने की सामर्थ्य रखता है या नहीं। हर सीट के विश्लेषण के बाद चुनाव को दो धुव्रीय बनाने से रोकना पहली प्राथमिकता होगी। इसके लिए जरूरी है कि सीटें पिछले प्रदर्शन की बजाय मौजूदा पॉलिटिकल एडजस्टमेंट के आधार पर आवंटित की जाएं।
दरअसल, कांग्रेस के बिहार में हालिया प्रदर्शन को लेकर वामदल भी खासे आशंकित हैं। ज्यादा सीटों पर लड़कर कांग्रेस कम सीट जीत पाई और गठबंधन के हाथ से सत्ता फिसल गई। हालांकि पश्चिम बंगाल के पिछले विधानसा चुनाव में कांग्रेस का स्ट्राइक रेट ठीक था। उसने 92 सीटों पर लड़कर 44 सीट जीती जबकि माकपा 148 सीटों पर लड़कर महज 26 सीटों पर सिमट गई थी। लेकिन अब तक हुई चर्चाओं से साफ है कि वामदल पिछले प्रदर्शन के आधार पर सीट बंटवारे के पक्ष में नहीं है। उन्हें उम्मीद है कि कांग्रेस इस फार्मूले से सहमत होगी