गुजरात के भावनगर का एक विख्यात स्थल यानी की ‘अलंग शिपयार्ड’ का अलग ही नजारा है। शहर के किसी ऊंची जगह पर खड़े होकर निहारें तो कई किलोमीटर तक आपको बस बड़े-बड़े जहाजों का बेड़ा या उनका मलबा ही नजर आएगा। जर्जर जहाजों को देखकर आप पहली नजर में ये अंदाजा भी नहीं लगा सकते कि ये वही जहाज हैं, जो कभी विशाल समुद्र का सीना चीरते हुए अंधी रफ्तार से भागा करते थे। लेकिन यह सच है, अलंग शिपयार्ड इन जहाजों का अंतिम सफर होता है। हर तरफ लोहे और लकड़ियों का कबाड़ बड़ी-बड़ी क्रेनों के सायरन, मशीनों की आवाजें कानों को झनझना कर रख देता है।
गौरतलब है कि, यह आज से लगभग 30 वर्ष पहले खंडहर हुआ करती थी। लेकिन आज दुनिया के फ्रांस के बाद दूसरे सबसे बड़े शिपयार्ड होने का तमगा इसके नाम है। दुनिया के सबसे पुराने जहाजो में से मार्को पोलो 55 साल पुराना है। उसकी देखरेख ओर इंश्योरेंस के भारी भरखम खर्च के चलते कंपनी ने अब मार्को पोलो को बेचने का फैसला लिया है।
कोरोना के चलते सबसे ज्यादा नुकसान टूरिज़म इंडस्ट्री का हुआ है। लग्जीरियस मानने वाले क्रूज़ को भी कबाड़ के लिए गुजरात के अलंग में लाया जा रहा है। इनमें अब एक नाम ब्रिटेन के मार्को पोलो का भी जुड़ गया है। करीब 55 साल पुराना, दुनिया के सबसे लग्जरियस जहाजो में से एक मार्को पोलो भी मंदी की मार नही झेल पाया। कई बड़ी कंपनियों में इस जहाज को खरीदने के लिए दिलचस्पी दिखाई है। अलंग शिपयार्ड पर आ जाने के बाद उसकी नीलामी की जाएगी।
आपको बता दें कि, भारत का पहला प्रीमियम क्रूज़ नवंबर में अलंग पहुंचा था। इसके बाद हाल ही में ओसियम ड्रीम नामक जहाज को समुद्र तट पर लाया गया है। जनवरी के अंत में ग्रैंड सेलिब्रेशन के साथ मार्को पोलो को कबाड़ में तब्दील कर दिया जाएगा और उसका नाम अब बस इतिहास के पन्नों में दर्ज भर रह जाएगा।