धूल से सभी परेशान हैं। स्वास्थ्य पर इसके गंभीर दुष्परिणामों से भी सभी वाकिफ हैं, लेकिन धूल बड़े-बड़े काम भी कर सकती है। एक शोध में ज्ञात हुआ है कि धूल से परमाणु हथियारों के दुष्प्रभावों को कम किया जा सकता है। इस दिशा में आगे शोध करने से परमाणु हथियारों के प्रभाव को कम करने की तकनीकें विकसित करने का रास्ता खुल सकता है।
नई दिल्ली स्थित नेताजी सुभाष टेक्नोलॉजी यूनिवर्सिटी की डॉ. मीरा चड्ढा ने यह शोध विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग यानी डीएसटी की महिला वैज्ञानिक योजना फेलोशिप के तहत किया है। यह योजना खास तौर पर उन महिला वैज्ञानिकों के लिए तैयार की गई है, जिनके करियर में पारिवारिक जिम्मेदारियों के कारण अवरोध आ जाता है। डॉ. चड्ढा भी एक साल की चाइल्ड केयर लीव पर थीं और उन्होंने इस दौरान भी अपना शोध जारी रखा।
उन्होंने गणितीय माडलिंग द्वारा यह साबित किया है कि परमाणु हथियारों के घातक प्रभावों को धूल कणों की मदद से हल्का किया जा सकता है। उनका शोध हाल में प्रोसीडिंग्स ऑफ रायल सोसायटी, लंदन में प्रकाशित हुआ है। शोध के अनुसार किसी गहन विस्फोट जैसे परमाणु विस्फोट से उत्पन्न होने वाली ऊर्जा और उससे प्रभावित होने वाले विनाश के क्षेत्र के दायरे को धूल कणों के माध्यम से कम किया जा सकता है। उन्होंने मॉडल के जरिए यह दिखाया है कि कैसे यह तीव्रता कम होती है। इस दिशा में पूर्व के अध्ययनों को यदि आधार बनाया जाए तो परमाणु विस्फोट की तीव्रता को 40 फीसदी तक कम करना संभव दिखता है।
डॉ. मीरा चड्ढा को यह प्रेरणा पूर्व राष्ट्रपति और महान वैज्ञानिक डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम से मिली। उन्होंने एक किताब पढ़ी, जिसमें कलाम से किसी ने प्रश्न पूछा था कि क्या कोई ऐसा बम बनाया जा सकता है जो परमाणु बम के प्रभाव को निष्क्रिय कर दे? इसके बाद मीरा चड्ढा ने शॉक वेव्स के बारे में गहन अध्ययन शुरू किया, जिसके बारे में उन्होंने अपनी पीएचडी के दौरान भी पढ़ा था।