चीन के बयान पर भारत की तीखी प्रतिक्रिया- हम नही मानते आपकी सुझाई LAC
61 साल पहले चीनी प्रमुख झाउ एनलाई ने भारतीय प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू को चिट्ठी में लिखकर जिस एलएसी का ज़िक्र किया था, चीन ने अब भी उसे ही भारत और चीन के बीच मान्य सीमा कहा है. यह वही बरसों पुराना राग है, जो चीन बार बार अलापता रहा है और भारत हर बार विरोध करता रहा है. लद्दाख में पिछले 4 महीनों से चल रहे तनाव के बाद शांति बहाली के लिए भारत और चीन के बीच चल रही वार्ताओं में फिर एक बार एलएसी की 1959 वाली स्थिति केंद्र में आ गई है.
चीन अपने पूर्व प्रधानमंत्री झाउ एनलाई के 1950 के दशक के दौरान जवाहरलाल नेहरू को लिखे पत्रों को आधार बनाकर विवाद खड़ा करता रहा है. 1962 के युद्ध के बाद चीन का दावा रहा कि वह 1959 में एलएसी से 20 किमी पीछे चला गया था. 2017 में डोकलाम विवाद के समय भी चीन ने भारत के सामने यही दलील रखते हुए 1959 की एलएसी स्थिति बहाल रखे जाने पर ज़ोर दिया था. चीन ने फिर जिसका हवाला दिया है भारत ने उसे मानने से फिर साफ़ इनकार किया है.
7 नवंबर 1959 के पत्र में एनलाई ने नेहरू को लिखा था कि LAC उसे ही माना जाए जो पूर्व में मैक्मैहॉन लाइन है और पश्चिम में दोनों देश जहां वास्तविक नियंत्रण की प्रैक्टिस कर रहे हैं. 1962 में युद्ध के दौरान नेहरू ने इस दावे को खारिज करते हुए फिर कहा था कि चीन के दावों के हिसाब से LAC को मान लेना और इस हिसाब से 20 किलोमीटर पीछे हटना निरर्थक है.
नेहरू ने साफ कहा था कि चीन ने आक्रामकता और हिंसा के दम पर LAC को परिभाषित करने की कोशिश की है. पहले आप 40 से 60 किलोमीटर तक सीमा में घुस आएं और फिर कहें कि दोनों देश 20 किलोमीटर पीछे हटेंगे और उसे LAC माना जाएगा, तो यह कोई तार्किक बात नहीं बल्कि बेवकूफ बनाने की साजिश है. इसके बावजूद एनलाई 7 नवंबर 1959 को सेनाओं की स्थिति के मुताबिक ही LAC को मानने की बात दोहराते रहे.