चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (सीजेआई) एसए बोबडे और सुप्रीम कोर्ट पर ट्वीट को लेकर अवमानना केस में सुप्रीम कोर्ट में अहम सुनवाई खत्म हो गई है। घंटों चली सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रख लिया है। सुनवाई के दौरान जस्टिस मिश्रा ने कहा कि भूषण के बयानों और उनके स्पष्टीकरण को पढ़ना दुखदायक है। उन्होंने कहा, ”प्रशांत भूषण जैसे 30 साल अनुभव वाले वरिष्ठ वकील को इस तरीके से व्यवहार नहीं करना चाहिए। मैंने वकीलों को पेंडिंग केसों में प्रेस में जाने को लेकर फटकार भी लगाई है। कोर्ट के एक अधिकारी और राजनीतिज्ञ में अंतर है। प्रेस में जाना, प्रशांत भूषण जैसे वकीलों के ट्वीट में वजन होना चाहिए। यह लोगों को प्रभावित करता है।”
जस्टिस मिश्रा ने कहा कि अदालती कार्यवाही की लाइव रिपोर्टिंग कई बार एक तरफा होती है और कई मामलों में गलत होती है। लेकिन, क्या हमने कोई कार्रवाई की है? जस्टिस बी आर गवई ने धवन से पूछा, ‘क्या वकील के लिए लंबित मामलों के बारे में इंटरव्यू या वेबिनार देना उचित है?’ इस पर धवन ने कहा कि वह इस बात से सहमत हैं कि मामले लंबित होने पर टिप्पणी नहीं की जानी चाहिए। प्रशांत भूषण के वकील धवन ने सुनवाई के दौरान फिर से कहा कि अदालत में दायर की गई दलीलों और बयानों को अदालत के विचार करने से पहले प्रेस को जारी नहीं किया जाना चाहिए।
जस्टिस मिश्रा ने कहा, ”हम इस आधार पर आदेश नहीं देने जा रहे हैं कि भूषण के समर्थन में कौन है और कौन नहीं। आप (भूषण) सिस्टम का हिस्सा हैं। आपकी गरिमा जजों के जैसी अच्छी है। यदि आप एक दूसरे को इस तरह खत्म करेंगे, लोगों का सिस्टम में भरोसा नहीं होगा।”
जस्टिस मिश्रा ने कहा, ”हम स्वस्थ आलोचना का स्वागत करते हैं। लेकिन हम आलोचना का जवाब देने के लिए प्रेस में नहीं जा सकते हैं। एक जज के रूप में मैं कभी प्रेस में नहीं गया। हमें इस नीति का पालन करना है। ऐसा मत मानिए कि हम किसी को आलोचना से रोक रहे हैं। हर कोई सुप्रीम कोर्ट की आलोचना कर रहा है। क्या हमने कोई ऐक्शन लिया है? प्रशांत के खिलाफ अवमानना का दूसरा केस 11 सालों से लंबित है। क्या हमने कोई ऐक्शन लिया है?” जस्टिस मिश्रा ने कहा कि कार्यकाल खत्म होने से पहले यह सब देखना दुखद है।
सुप्रीम कोर्ट ने माफी ना मांगने के स्टैंड पर दोबारा विचार करने के लिए 30 मिनट का समय दिया। जस्टिस अरुण मिश्रा की अगुवाई वाली बेंच ने कहा कि हमने उन्हें पहले माफी मांगने का समय दिया, लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया। प्रशांत भूषण ने हलफनामे में भी अपमानजनक टिप्पणी की है। अटॉर्नी जनरल ने कहा कि प्रशांत भूषण को अपने सभी बयान वापस लेकर खेद जतानी चाहिए। हालांकि, प्रशांत भूषण अपने पुराने रुख पर कायम हैं। भूषण के वकील राजीव धवन ने कहा कि बयान वापस लेने का सवाल ही नहीं उठता है।
कोर्ट की कार्रवाई दोबारा शुरू होने पर प्रशांत भूषण के वकील राजीव धवन ने वरिष्ठ वकील के योगदान का जिक्र करते हुए कहा कि उन्होंने न्यायमित्र के रूप में और पब्लिक केसों में इस कोर्ट में बहुत योगदान दे चुके हैं। धवन ने कहा कि मैंने 1000 आर्टिकल लिखे होंगे, जिनमें 900 सुप्रीम कोर्ट को लेकर हैं। मैने कहा था कि कोर्ट का टेंपरामेंट मिडिल क्लास वाला है। क्या यह अवमानना है? धवन ने यह भी कहा कि अटॉर्नी जनरल ने कहा है कि भूषण के विचारों को कई दूसरे पूर्व जजों ने भी व्यक्त किया है।
भूषण का बचाव करते हुए धवन ने जस्टिस अरुण मिश्रा से यह भी कहा कि जब वे कोलकाता हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस थे तब उन्होंने ममता बनर्जी के खिलाफ अवमानना की कार्रवाई नहीं की, जिन्होंने कहा था कि जज भ्रष्ट हैं। उन्होंने यह भी कहा कि 20 अगस्त के फैसले में भूषण को माफी के लिए समय देने से संदेश जाता है कि ज़बरदस्ती माफी मंगाने को कहा जा रहा है।
इस बीच कनेक्शन प्रॉब्लम की वजह से धवन डिसकनेक्ट हो गए। जस्टिस मिश्रा ने अटॉर्नी जनरल से मजाकिया लहजे में कहा, ‘वह अंधेरे में हैं।’ कनेक्शन दोबारा जुड़ने के बाद धवन ने कहा किस इस कोर्ट में पिछले छह साल में जो हुआ है उससे हम सब परेशान हुए हैं। मुझे इस कोर्ट के कुछ फैसलों पर गर्व है, लेकिन कई फैसलों पर गर्व नहीं है।
इससे पहले सरकार ने प्रशांत भूषण पर नरमी दिखाई। अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने सुप्रीम कोर्ट से गुजारिश की कि भूषण को चेतावनी देकर छोड़ दिया जाए। अटॉर्नी जनरल ने सुप्रीम कोर्ट में कहा, ”उन्होंने चेतावनी देकर छोड़ दिया जाए, बता दिया जाए कि भविष्य में फिर ऐसा ना करें।” सुप्रीम कोर्ट ने वेणुगोपाल से पूछा, ”बताइए क्या करना चाहिए। हमें अलग बयान की उम्मीद थी।” सरकार के वकील ने कहा कि कई मौजूदा और पूर्व जजों ने हायर ज्यूडिशरी में भ्रष्टाचार पर कॉमेंट किया है।
सरकार के सबसे बड़े वकील ने कहा, ”ये बयान कोर्ट को यह बताने के लिए रहे होंगे कि आप अस्पष्ट दिख रहे हैं और सुधार करें। वेणुगोपाल ने कहा कि भूषण को चेतावनी देकर छोड़ दिया जाए, सजा ना दी जाए।
इससे पहले प्रशांत भूषण ने सुप्रीम कोर्ट से माफी मांगने से इनकार कर दिया और कहा कि वह उनका विचार था और वह उस पर कायम हैं। जजों के खिलाफ अपने ट्वीट के लिए अवमानना का दोषी पाए गए अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने सोमवार को सुप्रीम कोर्ट में अपना जवाब दाखिल किया।
प्रशांत भूषण ने कहा ‘ मेरा बयान सद्भावनापूर्थ था। अगर मैं इस कोर्ट के समक्ष अपने बयान वापस लेता हूं, तो मेरा मानना है कि अगर मैं एक ईमानदार माफी की पेशकश करता हूं, तो मेरी नजर में मेरी अंतरात्मा और उस संस्थान की अवमानना होगी, जिसमें मैं सर्वोच्च विश्वास रखता हूं।’
दरअसल, सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को सामाजिक कार्यकर्ता और वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण से कहा था कि वह न्यायालय की अवमानना वाले ट्वीट को लेकर माफी नहीं मांगने वाले अपने बयान पर पुनर्विचार करें और इसके लिए उन्हें दो से तीन दिन का समय दिया गया है। कोर्ट ने 24 अगस्त तक की मोहलत दी थी।
गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट ने ट्विटर पर न्यायाधीशों को लेकर की गई टिप्पणी के लिए 14 अगस्त को उन्हें दोषी ठहराया था। प्रशांत भूषण ने 27 जून को न्यायपालिका के छह वर्ष के कामकाज को लेकर एक टिप्पणी की थी, जबकि 22 जून को शीर्ष अदालत के वर्तमान मुख्य न्यायाधीश एस. ए. बोबडे और चार पूर्व मुख्य न्यायाधीशों को लेकर दूसरी टिप्पणी की थी।