ऐ नौकरी! …तुझ पे ही मरते हैं…

नौकरी…. बड़ी हसीन होगी तू,

ऐ नौकरी! सारे युवा आज तुझ पे ही मरते हैं।।

सुख चैन खोकर, चटाई पर सोकर,

सारी रात जग कर, पन्ने पलटते हैं।

दिन में तहरी और रात को मैगी,

आधे पेट ही खा कर, तेरा नाम जपते हैं,

ऐ नौकरी! सारे युवा आज तुझ पर ही मरते हैं ।।

अनजान शहर में, छोटा सस्ता रूम लेकर,

किचन बैडरूम, सब उसी में सहेज कर,

चाहत में तेरी, अपने मां बाप और दोस्तों से दूर रहते हैं।

ऐ नौकरी! सारे युवा आज तुझ पर ही मरते हैं ।।

राशन की गठरी, सिर पर उठाए हैं,

मायूसी और मजबूरियां, खुद ही छिपाए,

खचाखच भरी ट्रेन में, बिना टिकट और खाली जेब,

रिस्क लेकर आज सफर करते हैं।

ऐ नौकरी! सारे युवा आज तुझ पर ही मरते हैं ।।

इंटरनेट, अखबारों में , तुझको तलाशते ,

तेरे लिए पत्र पत्रिकाएं पढ़ते -पढ़ते,

32 साल तक के जवान, कुंवारे फिरते हैं ।

तू कितनी हसीन है ऐ नौकरी… सारे युवा आज तुझ पर ही मरते हैं।

ऐ नौकरी… सारे युवा आज तुझ पर ही मरते हैं।।

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