ब्यूरो,
प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट” पर SC ने बनाई स्पेशल बेंच, 12 दिसंबर को सुनवाई
“प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट” पर SC ने बनाई स्पेशल बेंच, 12 दिसंबर को सुनवाई. स्थानीय अदालतों द्वारा संभल और अजमेर में मस्जिद के सर्वे के आदेश को देखते हुए शीर्ष अदालत ने ये निर्णय लिया है.
इस बीच सुप्रीम कोर्ट के पूर्व पूर्व न्यायाधीश आर एफ नरीमन ने राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद मामले में शीर्ष अदालत के 2019 में लिए फैसले की आलोचना की. उन्होंने फैसले को न्याय का मजाक बताया. साथ ही कहा कि अयोध्या मामले में फैसला धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांत के साथ न्याय नहीं करता है.
पूर्व सीजेआई ए.एम. अहमदी की याद में स्थापित अहमदी फाउंडेशन के उद्घाटन व्याख्यान में जस्टिस नरीमन ने कहा कि हालांकि इस फैसले में एक सकारात्मक पहलू भी है क्योंकि इसमें उपासना स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम, 1991 को बरकरार रखा गया है.
न्यायमूर्ति नरीमन ने कहा, ‘‘मेरा मानना है कि न्याय का सबसे बड़ा उपहास यह है कि इन निर्णयों में पंथनिरपेक्षता को उचित स्थान नहीं दिया गया.’’ न्यायमूर्ति नरीमन ने मस्जिद को ढहाये जाने को गैर कानूनी मानने के बावजूद विवादित भूमि प्रदान करने के लिए न्यायालय द्वारा दिए गए तर्क से भी असहमति जताई.
उन्होंने कहा, ‘‘आज हम देख रहे हैं कि देशभर में इस तरह के नये-नये मामले सामने आ रहे हैं. हम न केवल मस्जिदों के खिलाफ बल्कि, दरगाहों के खिलाफ भी वाद देख रहे हैं। मुझे लगता है कि यह सब सांप्रदायिक वैमनस्य को जन्म दे सकता है. इस सब को खत्म करने का एकमात्र तरीका यह है कि इसी फैसले के इन पांच पन्नों को लागू किया जाए और इसे हर जिला अदालत और उच्च न्यायालय में पढ़ा जाए.
दरअसल, ये पांच पन्ने उच्चतम न्यायालय द्वारा एक घोषणा है जो उन सभी को आबद्ध करता है.’’ उच्चतम न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश ने यह भी कहा कि कैसे विशेष सीबीआई न्यायाधीश सुरेंद्र यादव जिन्होंने मस्जिद ढहाये जाने के मामले में सभी आरोपियों को बरी कर दिया था, को सेवानिवृत्ति के बाद उत्तर प्रदेश में उप लोकायुक्त के रूप में नौकरी मिल गई। उन्होंने कहा, ‘‘देश में यह सब हो रहा है.’’