नेपाल के नए नक्शे के पीछे कूटनीतिक जानकार चीन की भूमिका देख रहे हैं। माना जा रहा है कि चीन के प्रभाव में ही नेपाल ने भारत के साथ अरसे पुरानी सहमति से अलग हटकर कदम उठाया है। जानकार मानते हैं कि भारत को नेपाल पर अपना ध्यान बढ़ाना होगा। अपने डिलीवरी सिस्टम को दुरुस्त करके पुराने मित्र
देश की आशंकाओं को दूर करना होगा। उसकी जरूरतों को पूरा करने के लिए वाकई में उस तरह बड़े भाई का रोल निभाना होगा, जैसा वायदा पूर्व की सरकारों ने किया था।
पूर्व विदेश सचिव शशांक ने कहा कि नेपाल के साथ बड़े भाई, छोटे भाई का पुराना रिश्ता बनाए रखने के लिए नेपाल को यह भरोसा देने की जरूरत है कि हम उनकी जरूरतो को पूरा करने में सक्षम हैं। उन्होंने कहा, नेपाल में कम्युनिस्ट पार्टी की प्रो चीन नीति को हम समय से नहीं समझ पाए। हमने सोचा कि उनके यहां कम्युनिस्ट गांधीवादी हैं। जबकि नेपाल में कम्युनिस्ट पार्टी की सरकार ये धारणा लोगों के बीच बनाती रही कि चीन उनकी जरूरतो को पूरा करने में सक्षम है। भारत को चाहिए कि अगर चीन वहां एक रेल परियोजना लेकर जाना चाहता है तो हम कई योजनाएं लेकर जाएं और उन्हें समय से पूरा करें। पूर्व विदेश सचिव ने कहा, डिलीवरी हमारी कमजोरी रही है और इसका फायदा चीन हमारे पड़ोस में उठाने का प्रयास कर रहा है। शशांक ने कहा कि हमें तय मैकेनिज्म के जरिए बात करनी चाहिए।
नेपाल को समझाना चाहिए कि कालापानी के इलाके में भारत ने किसी सहमति को नही तोड़ा है। बीते कुछ सालों में नरम-गरम रिश्तों से अलग हटकर नेपाल के साथ भरोसा विकसित करने के लिए कई कदम उठाने पड़ेंगे। पूर्व विदेश सचिव ने कहा, कालापानी नदी का किनारे का इलाका हमेशा भारत के पास रहा है। दोनो देश इस मुद्दे पर लगातार बातचीत करते रहे हैं। उन्होंने कहा चीन भारत पर दबाव बनाने के लिए अपनी गो वेस्ट नीति का भी इस्तेमाल कर रहा है। इससे हमें सतर्क रहने की जरूरत है।