ब्यूरो,
शादीशुदा महिला को शादी के झूठे वादे पर सहमति देने के लिए फुसलाया नहीं जा सकता: झारखंड हाईकोर्ट
⚫ झारखंड हाईकोर्ट ने माना कि जो विवाहित महिला अपने पति के अलावा किसी अन्य पुरुष के साथ सहमति से यौन संबंध बनाती है, बाद में शादी के झूठे बहाने से बलात्कार के लिए उस पर मुकदमा नहीं चला सकती। दूसरे शब्दों में न्यायालय का विचार है कि विवाहित महिला को शादी के झूठे वादे पर सेक्स के लिए सहमति देने के लिए फुसलाया नहीं जा सकता, क्योंकि ऐसा वादा अवैध है।
जस्टिस संजय कुमार द्विवेदी की एकल न्यायाधीश पीठ ने आरोपी-याचिकाकर्ता पर लगाए गए बलात्कार के आरोप का संज्ञान लेने के आदेश को रद्द करते हुए कहा,
🟤 “मामले में पीड़िता एक विवाहित महिला है। उसने स्वेच्छा से याचिकाकर्ता के साथ यौन संबंध बनाए, यह जानते हुए कि वह याचिकाकर्ता के साथ शादी नहीं कर सकती, क्योंकि वह विवाहित महिला है। यहां तक कि याचिकाकर्ता द्वारा उस वादे को मानते हुए भी शादी के लिए वह जानती है कि वह विवाहित महिला है और शादी नहीं होगी। इसके बावजूद उसने याचिकाकर्ता के साथ संबंध स्थापित किया।
इस तरह यह वादा अवैध है और यह भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 376(2)(एन) के तहत अभियोजन का आधार नहीं हो सकता।”
👉 तथ्यात्मक पृष्ठभूमि
🟡 याचिकाकर्ता पीड़िता/शिकायतकर्ता (यहां ओपी नंबर 2) के संपर्क में आया और उसे पता चला कि वह विवाहित महिला है, जो उस समय अपने पति के साथ तलाक के मुकदमे में पक्षकार थी। ऐसा आरोप है कि याचिकाकर्ता ने शिकायतकर्ता से तलाक के बाद शादी करने का झांसा दिया। 03.12.2019 को याचिकाकर्ता ने कथित तौर पर एक मंदिर में अपनी मांग में सिंदूर लगाया।
इसके बाद उन्होंने कई बार शारीरिक संबंध बनाए, लेकिन 11.02.2021 को याचिकाकर्ता ने उससे शादी करने से पूरी तरह इनकार कर दिया।
🟠 इसके बाद, आईपीसी की धारा 406, 420, 376 (2) (एन) के तहत अपराध करने के लिए मामला दर्ज किया गया और मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट, देवघर ने दिनांक 24.11.2021 के आदेश में उक्त अपराधों का संज्ञान लिया। इससे व्यथित होकर याचिकाकर्ता ने पूरी आपराधिक कार्यवाही रद्द करने के लिए हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया।
👉 पक्षकारों की दलीलें
🔵 याचिकाकर्ता की वकील प्राची प्रदीप्ति ने कहा कि शिकायतकर्ता ने सीआरपीसी की धारा 164 के तहत अपने बयान में स्वीकार किया कि वह पहले से ही शादीशुदा है और प्रासंगिक समय पर वह अपने पति के साथ तलाक के मुकदमे में लगी हुई थी। इस प्रकार, उसने तर्क दिया कि क्योंकि वह पहले से ही शादीशुदा थी, उसे शादी के लिए लुभाने का कोई सवाल ही नहीं था। उसने आगे कहा कि उस आधार पर आईपीसी की धारा 376(2)(एन) के तहत आरोप कायम नहीं रखा जा सकता।
🟢 शिकायतकर्ता की ओर से पेश वकील सुमित प्रकाश ने कहा कि याचिकाकर्ता ने शादी के झूठे बहाने से शिकायतकर्ता के साथ संबंध स्थापित किया, इसलिए सीजेएम ने सही संज्ञान लिया। उन्होंने तर्क दिया कि सुप्रीम कोर्ट के फैसलों का क्रम है, जो यह निष्कर्ष निकालता है कि अगर शादी के बहाने यौन संबंध स्थापित किया जाता है तो आईपीसी की धारा 376 के तहत मामला कायम रखा जा सकता है।
👉 न्यायालय की टिप्पणियां
⭕ कोर्ट ने शिकायतकर्ता द्वारा सीआरपीसी की धारा 164 के तहत दिए गए बयान पर ध्यान दिया, जिसमें उसने साफ तौर पर कहा कि वह शादीशुदा है और उस समय तलाक का मामला चल रहा था।
🔴 खंडपीठ ने कहा कि यह तथ्य बताता है कि शिकायतकर्ता ने याचिकाकर्ता के साथ उसकी सहमति से संबंध स्थापित किया, यह जानने के बाद भी कि वह उससे शादी नहीं कर सकती, क्योंकि वह पहले से ही शादीशुदा है।
🟣 इसलिए न्यायालय के सामने महत्वपूर्ण प्रश्न यह तय करना था कि क्या आईपीसी की धारा 376 के तहत बलात्कार के लिए ऐसे व्यक्ति के खिलाफ मामला चलाया जा सकता है, जिसके साथ विवाहित महिला शादी के झूठे बहाने से सहमति से यौन संबंध बनाती है।
🛑 मामले के तथ्यों को ध्यान में रखते हुए अदालत ने कहा कि शिकायतकर्ता विवाहित महिला ने स्वेच्छा से याचिकाकर्ता के साथ यौन संबंध बनाए, यह जानते हुए कि वह उसके साथ शादी नहीं कर सकती, क्योंकि वह पहले से ही शादीशुदा है। इस प्रकार, अदालत ने कहा कि अगर वह इस तरह के वादे के बहाने यौन संबंध बनाना चुनती है तो ऐसा वादा अवैध हो जाता है और यह आईपीसी की धारा 376 के तहत आरोप लगाने का आधार नहीं बन सकता।
👉 कोर्ट ने आगे कहा,
⏺️ “मामले में कोई सवाल ही नहीं कि इस याचिकाकर्ता ने प्रलोभन दिया, क्योंकि वह पहले से ही शादीशुदा है और उसका तलाक नहीं हुआ है। इसके बावजूद, उसने याचिकाकर्ता के साथ संबंध स्थापित किए।”
⏩ कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि आईपीसी की धारा 420 केवल तभी बनती है, जब शुरू से ही धोखा देने का इरादा हो, जो कि इस मामले में अनुपस्थित है। इस प्रकार, प्रथम दृष्टया खंडपीठ को यह प्रतीत हुआ कि उस प्रावधान के तत्व स्थापित नहीं हैं।
👉🏽 तदनुसार, अदालत ने सीजेएम का आक्षेपित आदेश रद्द कर दिया और कानून के स्थापित बिंदुओं के संबंध में मामले पर नए सिरे से विचार करने के लिए मामले को वापस निचली अदालत में भेज दिया।
केस टाइटल: मनीष कुमार शर्मा @ मनीष कुमार बनाम झारखंड राज्य और अन्य।