बुजुर्गों की सीख—

ए.के. दुबे

एक तालाब में एक मछली रहती थी और पास में ही एक बगुला..

मछली अपने तालाब की सबसे होशियार लड़की थी पढ़ने में तेज घर के सभी कामो में एकदम चतुर..

बगुले की उसपर काफी समय से नजर थी.. उसने एक दिन उससे बात करने की कोशिश की.. मछली ने अपने घर वालों से बताया तो घर वालों ने समझाया बेटा बगुले से दूर रहना खा लेगा तुम्हे.. लड़की बोली ठीक है… घर वाले भी इतना समझाकर सोचे हो गया हमारा कर्तव्य..

लेकिन बगुले को पता था कैसे फांसना है मछली को… उसकी ट्रेनिंग थी उसके पास.. उसने पढा था इन सबके बारे में.. वो जानबूझकर उसके आसपास घूमता.. कभी आम खाता कभी जामुन कभी अमरूद.. मछली सोचने लगी घर वाले तो बोलते हैं ये बगुले तो मछली कीड़े सब खाते हैं.. लेकिन ये तो नही खा रहा.. कुछ दिनों बाद बगुले ने मछली से फिर बात करने की कोशिश की.. इस बार मछली धीरे धीरे उससे बात करने लगी.. उसे घरवालों की तमाम बातें झूठी लगने लगी जो उसने बगुले के बारे में सुन रखी थी..
वो प्यार से उसे बगदुल कहने लगी..

कोई समझाता तो कहती मेरा वाला बगदुल वैसा नही है..

वो मछली नही खाता.. मेरे परिवार और मेरी इज्जत करता है.. स्मार्ट गोरा भी है.. मेरा बगदुल अलग है..
घरवालों को पता चला तो उन्होंने गुस्से में मछली को डांटा और कहा कि ऐसी गलती ना करे

लेकिन मछली तो पढ़ी लिखी और समझदार थी, उसे बड़े बुजुर्गो के अनुभव पर नही अपनी आंखो पर विश्वास था क्यूंकि उसका बगदुल तो वैसा ही था जैसा वो सोचती थी कहानी और फिल्मों को देखकर…

फिर एक दिन घरवालों के समझाने और डांटने पर उसने अपने परिवार वालो को पिछड़ा संकुचित और गंवार बोलकर बगदूल के साथ दूसरे तालाब में जाकर साथ रहने लगती है..

और फिर एक दिन बगुला उसे बिना नमक मिर्ची के ही खा जाता है…

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