ब्यूरो,
इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने पुलिस हिरासत में एक व्यक्ति को जान से मारने के आरोपी एक पुलिसकर्मी की जमानत याचिका खारिज कर दी. साथ ही कोर्ट ने बुधवार को कहा कि हिरासत में व्यक्ति के साथ हिंसा और उसकी मौत, हमेशा से ही सभ्य समाज के लिए चिंता का विषय रहा है. शेर अली नाम के पुलिसकर्मी की जमानत याचिका खारिज करते हुए न्यायमूर्ति समित गोपाल ने डीके बसु बनाम पश्चिम बंगाल सरकार के मामले में उच्चतम न्यायालय द्वारा पारित निर्णय का हवाला दिया जिसमें न्यायालय ने पुलिस हिरासत में मौत पर नाराजगी जाहिर करते हुए आरोपी की गिरफ्तारी के लिए दिशानिर्देश जारिए किए थे, ताकि ऐसी घटनाएं रोकी जा सकें.मौजूदा मामले में शिकायतकर्ता संजय कुमार गुप्ता ने आरोप लगाया कि 28 दिसंबर, 1997 को कुछ पुलिसकर्मी उनके घर आए और उनके पिता गोरखनाथ उर्फ ओम प्रकाश गुप्ता को अपने साथ ले गए. बाद में पुलिसकर्मियों द्वारा उन्हें बताया गया कि उनके पिता की ह्रदय गति रुकने से मृत्यु हो गई. पुलिस के इस बयान को नकारते हुए शिकायतकर्ता ने आरोप लगाया कि उनके पिता को बेरहमी से पीटा गया जिसकी वजह से थाने में ही उनकी मृत्यु हो गई. इस मामले में शेर अली के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 364, 304 और 506 के तहत प्राथमिकी दर्ज कराई गई थी.इलाज के दौरान उसकी मौत हो गई थीबता दें कि उत्तर प्रदेश ही नहीं कई राज्यों में पुलिस हिरासत में मौत के मामले बढ़ गए हैं. बीते फरवरी महीने में खबर सामने आई थी कि यूपी के जौनपुर में पुलिस हिरासत में युवकी की मौत हो गई. इसके बाद बाद गांव वालों का आक्रोश पुलिस पर फूट गया था. दरअसल, जौनपुर के बक्शा थाना में लूट के मामले में क्राइम ब्रांच की टीम ने गुरुवार को किशन यादव उर्फ पुजारी समेत चार युवकों को पकड़ा था. पूछताछ के लिए सभी को बक्शा थाने लाया गया था. तब देर रात पूछताछ के दौरान किशन की हालत खराब हो गई थी. पुलिसकर्मियों ने आनन-फानन में बक्शा सीएचसी उसे पहुंचाया, जहां चिकित्सकों ने जिला अस्पताल रेफर कर दिया. इलाज के दौरान उसकी मौत हो गई.