फिल्मी संगीत के पीछे छुपे इस ‘जुमले’ का सच क्‍या है?

ये सच है कि पुराने दौर का संगीत अब फिल्‍मों से नदारद है. वो दौर नौशाद, शंकर-जयकिशन, कल्‍याणजी-आनंदजी, लक्षमीकांत-प्‍यारे लाल, आर.डी.बर्मन, जैसे ग्रेट संगीतकारों का दौर था. लता, रफी, किशोर, मन्‍नाडे, मुकेश, आशा, सुमन कल्‍याणपुर, सुरेश वाडकर और हेमंत कुमार जैसे गायकों की सुमधुर गायिकी से सजे गीत उन दिनों सचमुच कानों में रस घोलते थे.

बात पुरानी है. मेरी एक कलीग थी, उसकी बेटी कान्‍वेंट स्‍कूल में पढ़ती थी पहली या दूसरी क्‍लास में. एक दिन उसकी टीचर ने बच्‍ची की मम्‍मी को फोन किया और बच्‍ची की शिकायत की. उन्‍होंने कहा कि आपकी बच्‍ची से आज मैंने क्‍लास में पोयम सुनाने को कहा तो उसने मुझे उसने एक फिल्‍मी गीत का मुखड़ा सुना दिया. गीत था सलमान-करीना की फिल्‍म बॉडीगार्ड का. बोल थे – ‘तेरी मेरी प्रेम कहानी है मुश्किल, दो लफ़्जों में ये, बयां ना हो पाए.

जिस प्रचलित जुमले की बात हम कर वो कुछ यूं है ‘पुराने ज़माने के गीतों में जो मेलॉडी थी वो अब नहीं रही, वर्तमान दौर की फिल्‍मों से मेलोडी गायब हो चुकी है.’ पुरानी पीढ़ी के लोग कहते हैं साठ-सत्‍तर और उसके पहले के फिल्‍मी गानों जो मधुरता थी, वो अब देखने को नहीं मिलती. अब तो कानफोड़ू संगीत सुनने को मिल रहा है. पुराने गीत अजर अमर हैं और आज भी चाव से सुने जाते हैं, जबकि नए गीतों की उम्र लंबी नहीं होती.

ये सच है कि पुराने दौर का संगीत अब फिल्‍मों से नदारद है. वो दौर नौशाद, शंकर-जयकिशन, कल्‍याणजी-आनंदजी, लक्षमीकांत-प्‍यारे लाल, खय्याम, एस.डी.बर्मन, ओ.पी.नैयर, मदन मोहन, आर.डी.बर्मन, जैसे ग्रेट संगीतकारों का दौर था. लता, रफी, किशोर, मन्‍नाडे, मुकेश, आशा, सुमन कल्‍याणपुर, सुरेश वाडकर और हेमंत कुमार जैसे गायकों की सुमधुर गायिकी से सजे गीत उन दिनों सचमुच कानों में रस घोलते थे. शमशाद बेगम का गीत लेके पहला पहला प्‍यार पुरानी पीढ़ी आज भी चाव से सुनती है.

पहले कमाल की होती थी फिल्‍मों की शायरीउन दिनों के गीतों में शायरी भी कमाल की होती थी. साहिर लुधियानवी, मज़रूह सुलतानपुरी, नीरज, शकील बदायुनीं, आनंद बक्‍शी, इंदीवर, हसरत जयपुरी, जां निसार अख्‍तर,  राजेन्‍द्र कृष्‍ण, एस.एच. बिहारी, असद भोपाली, प्रदीप, आदि आदि. विनम्रता से एक बात. यह याददाश्‍त के आधार पर बनाई गई यह सूची अधूरी है इसमें कुछ नाम छूट सकते हैं. दूसरी बात इसमें दिए गए नाम वरिष्‍ठता या योग्‍यता के क्रम में नहीं हैं. गुलज़ार, जावेद अख्‍तर, इरशाद कामिल ओर प्रसून जोशी आदि नए दौर के शायर हैं. इसमें कोई शक नहीं कि पुराना दौर मौसिकी के नज़रिए से गुणी लोगों का दौर था. लेकिन ये सिक्‍के का एक पहलू है. सिक्‍के का दूसरा पहलू भी ग़ौर करने लायक है.

वापस उस बच्‍ची के किस्‍से और ‘तेरी मेरी प्रेम कहानी है मुश्किल’ गीत पर आते हैं. अगर कविता के नाम पर बच्‍ची ये गीत टीचर को सुना सकती है, तो इसका सीधा मतलब ये है कि गीत उसे बहुत पसंद था. गीत मधुर था इसलिए ही तो उसे पसंद आया. यानि पुराने लोगों के उस जुमले का यह खंडन करती है कि नए गानों में मेलॉडी नहीं होती. अगर मधुरता नहीं होती तो एक छोटी सी बच्‍ची इसमें कैसे इतना डूब जाती. जुमले के समर्थक सवाल कर सकते हैं कि ‘ ये कैसे कहा जा सकता है कि बच्‍ची को गीत इसलिए पसंद आया, क्‍योंकि वो मधुर था या मेलॉडी से भरपूर था. सवाल जायज़ है.

अज्ञानी भी समझ कसते हैं संगीत की मधुरतापहली या दूसरी जमात में पढ़ने वाली बच्‍ची की उम्र लगभग पांच या छ: साल की होगी. इतनी छोटी बच्‍ची के मामले में हमें ये मानना चाहिए कि उसे लिरिक्‍स की उतनी समझ नहीं होगी. ये एक प्रेम गीत है जो युवाओं को ज्‍यादा भाता है. बच्‍ची को लिरिक्‍स की समझ नहीं होगी. अगर वो लिरिक्‍स का मतलब समझ जाती तो टीचर के सामने उसे सुनाने की हिम्‍म्‍त वो कभी करती ही नहीं. तो फिर गीत में ऐसा क्‍या था जो उसे भाया ? ज़ाहिर है संगीत.

संगीत में मधुरता ही एकमात्र ऐसी चीज़ है जिसे संगीत का अज्ञानी भी समझ सकता है, एक बच्‍चा भी समझ सकता है और वो नादान बच्‍ची भी. इसमें गहरे डूब सकती है और तभी वो इसे टीचर को सुना भी सकती  है. 2011 में रिलीज़ यह गीत बॉडीगार्ड फिल्‍म का है. जिसे राहत फतेह अली खान और श्रेया घोषाल ने गाया है. गीत शब्‍बीर अहमद ओर संगीत हिमेश रेशमिया का है.

मेरे एक गज़ल गायक दोस्‍त हैं, ज़ुल्‍फिकार अली. घ्रुपद केन्‍द्र में डागर बंधुओं से संगीत सीखा है. बॉलीवुड में रह चुके हैं. आज भी फिल्‍मों से जुड़े हैं. उनका कहना है कि ‘आज भी मधुर गीत रचे जा रहे हैं, लेकिन पुरानों के मुकाबले वो ठहरते नहीं हैं. पहले क्‍लासिकल बेस गाने हुआ करते थे आजकल शास्‍त्रीय संगीत को उतनी तरजीह नहीं दी जाती. फिल्‍मी गीतो में फोक का इस्‍तेमाल भी होता था.

शंकर जयकिशन (विभिन्‍न फोक), एसडी बर्मन (बंगाली फोक), नौशाद (भोजपुरी) से लेकर ओ पी नैयर (पंजाबी टप्‍पा) तक सभी किसी ना किसी रूप में लोक के सहारे अपनी ज़मीन से जुड़े हुए संगीत की रचना करते थे.’ उनके इस कथन से सहमत हुआ जा सकता है.

कुछ इस तरह होती थी गानों की रिकार्डिंग
ये भी सच है कि पहले गीत की रिकार्डिंग से पूर्व लंबी रिहर्सल की जाती थी, आज नहीं की जाती. वैसे आज तकनीक ने इतनी तरक्‍की कर ली है कि रिहर्सल तो छोडि़ए एक गाने की रिकार्डिंग भी टुकड़ों में हो जाती है. एक और बात है आजकल एक गाने को एकाधिक गायकों की आवाज़ में रिकार्ड किया जाता है और फिर सीन और कलाकार के हिसाब से उपयुक्‍त गाने को फिल्‍म में रख लिया जाता है.

आपको अरिजीत सिंह और फिल्‍म ‘सुल्‍तान’ वाला किस्‍सा तो याद होगा, जब अरिजीत सिंह ने सलमान से सार्वजनिक रूप से आग्रह किया था कि फिल्‍म मे उसके द्वारा गाए गाने को रखा जाए. लेकिन अंतत: फिल्‍म में राहत फतेह अली खान द्वारा गाए गाने को रखा गया. गीत था जग घूमिया थारे जैसा ना कोई. इस गीत को इरशाद कामिल ने लिखा था और विशाल शेखर ने संगीतबद्ध किया था. इस गाने के लिए राहत और इरफान को फिल्‍मफेयर अवार्ड भी मिले थे. यह गाना भी मेलॉडी से भरपूर था.

पुराने गाने की बात करें. ताज महल के गीत- ‘जो वादा किया, वो निभाना पड़ेगा’ या ‘पांव छू लेने दो फूलों को इनायत होगी’. शम्‍मी कपूर की फिल्‍मों के गीत भी उस जमाने में बहुत पापुलर थे. कश्‍मीर की कली हूं मैं, या जंगली का एहसान मेरा होगा तुझ पर, या फिर राजकुमार तीसरी मंजि़ल के गीत भी बहुत पापुलर और मधुर थे. ‘ओ मेरे सोना’ और ‘तुमने मुझे देखा होकर मेहरबां आदि’.

देवानंद पर फिल्‍माए गीत भी बहुत मधुर और लोकप्रिय थे गाइड, ज्‍वेलथीफ, प्रेम पुजारी (शोखियों में घोला जाए फूलों का शबाब) आदि. मुगले आज़म के गीत ‘प्‍यार किया तो डरना क्‍या’ सहित दिलीप कुमार की फिल्‍म लीडर (तेरे हुस्‍न की क्‍या तारीफ करूं) नया दोर, गंगा जमुना और कोहिनूर के गीत. राजकपूर को संगीत की गहरी समझ थी और वो इस पर बहुत ध्‍यान देते थे. उनके द्वारा अभिनीत फिल्‍मों के गीत भी माधुर्य से भरपूर थे. लिस्‍ट बहुत लंबी है.

नए जमाने के मधुर गीतों का दौर
ये कहना तो बहुत मुश्‍किल है कि नए ज़माने में मधुर गीतों को दौर कब से शुरू हुआ और कौन सी फिल्‍म से. लेकिन हम एक फिल्‍म की बात यहां कर सकते हैं. 1990 में एक फिल्‍म आई थी भट्ट कैम्‍प की ‘आशिकी’ राहुल राय और अनु अग्रवाल वाली. इस फिल्म के गीतों ने खूब लोकप्रियता हासिल की और श्रोताओं के कान पर बरसों राज भी किया. मेलॉडी इनमें कूट-कूट कर भरी थी. इसका संगीत रचा था नदीम श्रवण ने. ये जोड़ी तीन उपकरणों पर बहुत ज्‍यादा निर्भर थी. बांसुरी, सितार और शहनाई. जहां ये साज होंगे वहां मधुरता तो होगी ही.

नदीम-श्रवण ने एक नई शैली ईज़ाद की; वे इन इंस्‍ट्रूमेंट का उपयोग आधुनिक तरीकों से जरूर करते थे, लेकिन उनके विशेषताओं को जीवंत रखते हुए. फिल्‍म क्रिमिनल और 1942 ए लव स्‍टोरी की बात भी इस संबंध में की जाना चाहिए. ‘तुम मिले दिल खिले ओर जीने को क्‍या चाहिए – क्रिमिनल तथा एक लड़की को देखा तो ऐसा लगा और कुछ ना कहो, कुछ भी ना कहो – 1942 ए लव स्‍टोरी. ये सभी तराने मधुरता की गहरी चाशनी में डूबे हुए गीत थे. क्रिमिनल नागार्जुन और मनीषा कोईराला की फिल्‍म है.

1994 की इस फिल्‍म का निर्देशन महेश भट्ट ने किया था. इस फिल्‍म के विज्ञापन को लेकर विवाद हुआ था जहां तक मुझे याद है इसमें बताया गया था कि मनीषा कोईराला का मर्डर हो गया है. जबकि वास्‍तव में फिल्‍म के किरदार का मर्डर हुआ था. ऐसे ही लव स्‍टोरी से लंबे समय बाद आरडी बर्मन की वापसी हुई थी. 1989 – परिंदा के बाद उन्‍हें 1994 में यह फिल्‍म मिली थी और उन्‍होंने अपने आपको साबित भी किया.

दिल में बसने वाले नए जाने के ये गीत
नए गीतों में भी बहुत सारे मधुर गीत हैं. भट्ट ब्रदर्स की फिल्‍मों के संगीत में माधुर्य का बोलबाला रहा है. जैसे आशिकी, मर्डर, गेंगस्‍टर, आशिकी 2, आदि के गीत इस संदर्भ में याद किए जा सकते हैं. सुरमई अंखियों ने – सहित इलैया राजा ने कई मधुर गीत रचे. देल्‍ही 6 के गीतों को इस श्रेणी में रखा जा सकता है. गेंदा फूल जैसा लोकगीत भी इस फिल्‍म में था. 1999 की फिल्‍म ताल को भी मधुर संगीत के लिए याद किया जा सकता है. जिसमें एआर रहमान ने कमाल का संगीत रचा था.

इश्‍क बिना, ताल से ताल मिला, रमता जोगी सहित सभी कमाल के सांग थे. आनंद बख्‍शी ने गीत लिखे थे. फिल्‍म के निर्माता और निर्देशक सुभाष घई ने संगीत जारी करते हुए प्रेस कांफ्रेंस में कहा था कि रहमान ने मुझे कई रात जगाए रखा. गाने सुनने के बाद मुझे लगा कि यह परेशानी जायज़ थी.

मैं रंग शरबतों का तू मीठे घाट का पानी – यह मधुर गीत शाहिद कपूर की फिल्‍म का है. प्रेमगीत के मधुर गीतों को कौन भूल सकता है, जैसे – होठों से छू लो तुम.  शाहिद करीना की फिल्‍म जब वी मेट के मधुर गानों को भी याद किया जा सकता है. इसी तरह सैफ करीना की एजेंट विनोद का गीत – ‘कुछ तो है तुझसे राब्‍ता‘ तो मीठे के साथ अनूठा भी है, अनूठा इसलिए कि इस मधुर गीत की पृष्‍ठभूमि में मारधाड़ और गोलीबारी के बावजूद मधुरता कायम है. ऐसे ही मल्लिका शेरावत के आइटम सांग को कौन भूल सकता है.

गुलज़ार और रहमान की जोड़ी का रचा गीत ‘मैया मैया’ मधुरता से ओतप्रोत था. राकस्‍टार ओर ये दिल है मुश्किल (शीर्षक गीत), दिल वाले दु‍लहनिया ले जाएंगे सहित वीर ज़ारा के गीत भी मेलॉडी से भरपूर थे. इसी तरह, दिल तो पागल है के मधुर गीतों को कौन भूलना चाहेगा फिर चाहे वो शीर्षक गीत हो या फिर ‘कुछ तुम बोलो कुछ हम बोलें ओ ढोलना.’ धूम 3 जैसी थ्रिलर फिल्‍म में ‘तू ही ज़ुनून’ जैसा खूबसूरत गीत था, जो सुनने के साथ-साथ देखने में भी लुभावना था. लंबी लिस्‍ट है जो बताने के लिए काफी है कि नए ज़माने में भी मधुर गीत रचे जा रहे हैं.

पुराने गीतों के अजर-अमर होने का दावा
दूसरा दावा कि पुराने गीत अजर-अमर हैं ओर नए गीत अखबार की खबर की तरह कम उम्र वाले. इसके पीछे का सच ये है कि पुराने ज़माने में मनोरंजन के लिमिटेड साधन थे, इसलिए एक ही गाना बार-बार लगातार सुना जाता था इसलिए ज़बान पर हमेशा के लिए चढ़ जाता था. नए दौर में मनोरंजन के साधन अधिक हैं ओर तकनीक ज्‍यादा मात्रा में क्रिएशन करने में सक्षम है. इसलिए नया गाना पुराने को चलन से बाहर कर देता है. लेकिन ऐसा हरेक के साथ नहीं है.

उदाहरण के लिए, अगर ऊपर वर्णित गाने आज भी पसंद किए जाते हैं, तो मेलॉडी ही उसकी जड़ में है. पुराने गीतों की शायरी भी कमाल की होती थी जो गीत को लंबे समय तक जिंदा रखती है. मज़रूह लिखते हैं, तुम्‍हारे आने तलक हमको होश रहता है फिर उसके बाद हमें कुछ खबर नहीं होती. सच है लेकिन नए गीतकार भी कम अच्‍छा नहीं रचते. पुन: दोहरा दूं लेख में दिए गए गीतकार, संगीतकार, गायक आदि के नामों की लिस्‍ट में अनेक नाम नहीं हैं जो गुणीं थे. इस लेख का उद्देश्‍य सूची जारी करना नहीं है.

एक बात तो नए दौर के संगीत के बारे में कही जाती है, सौ फीसद सही है कि ‘आज का संगीत सुनने से ज्‍यादा देखने का संगीत बन गया है.’ एक बात और. ये मधुरता या मेलॉडी होती क्‍या है ? तो तकनीकी परिभाषा की बात तो हम नहीं करेंगे हां, ये कहा जा सकता है कि जो कानों को अच्‍छा लगे और हमारे कानों में मीठा रस घोल दे वही मेलॉडी है.

जाते-जाते कुछ ओर पुराने तराने आपकी याददाश्‍त ताजा करने के लिए.

याद किया दिल ने कहां हो तुम (पतिता) 1953, ये रात भीगी भीगी (चोरी चोरी) 1956, ए दिल मुझे बता दे तू किस पे – भाई भाई- 1956, माना जनाब ने पुकारा नहीं – पेइंग गेस्‍ट– 1957, हम आपकी आंखों में – प्‍यासा- 1957, आईए मेहरबां – हावड़ा ब्रिज 1958, जाने कहां मेरा जिगर गया जी – मिस्‍टर एण्‍ड मिसेज 55 – 1958, दिल की नज़र – अनाड़ी – 959 ,   तस्‍वीर तेरी दिल में – माया – 1961, इतना ना मुझसे तू प्‍यार बढ़ा – छाया – 1961, रूक जा रात ठहर जा ओ चंदा – दिल एक मंदिर – 1963. इसी तरह स्‍वर की मधुरता से सराबोर एक गीत था आशा पारेख और प्रदीप पर फिल्‍माया गया- ये किसने गीत छेड़ा दिल मेरा गया …. फिल्‍म थी मेरी सूरत तेरी आंखें – 1963.

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