अस्थमा पर नियंत्रण से कोरोना की हार

अस्थमा पर नियंत्रण से कोरोना की हार

• बचपन में ही हो जाता है हावी: डॉ. आरके शर्मा
• लापरवाही पड़ेगी भारी
वाराणसी, 22 जून 2021
कोरोना संक्रमण का सीधा असर हमारे फेफड़ों और सांस लेने की क्षमता पर होता है और ऐसे में कहीं अगर आपको अस्थमा (दमा) की तकलीफ है तो यह मेल बेहद घातक हो सकता है। अगर फेफड़े होंगे दुरुस्त, तो आप रहेंगे तंदुरुस्त। यह कहना है एसएसपीजी मंडलीय चिकित्सालय कबीरचौरा के वरिष्ठ परामर्शदाता एवं चेस्ट फिजीशियन डॉ आरके शर्मा का।
डॉ. शर्मा का कहना है कि अस्थमा (दमा) एक आनुवांशिक रोग है जिसमें मरीज की सांस की नलियाँ अतिसंवेदनशील हो जाती हैं एवं कुछ कारकों के प्रभाव से उनमें सूजन आ जाती है जिससे रोगी को सांस लेने में कठिनाई होती है। ऐसे कारकों में धूल (घर या बाहर की) या पेपर की डस्ट, रसोई का धुआं, नमी, सीलन, मौसम परिवर्तन, सर्दी–जुकाम, धूम्रपान, फास्टफूड, मानसिक चिंता, पेड़-पौधों एवं फूलों के परागकण, वायरस एवं बैक्टीरिया इत्यादि के संक्रमण प्रमुख होते हैं।
बचपन में ही हो जाता है हावी – उन्होने बताया की कोरोना की दूसरी लहर से पहले ओपीडी में प्रतिदिन लगभग 40 से 50 मरीज आते थे जिसमें अस्थमा के 10 से 15 मरीज रहते थे। वर्तमान में ओपीडी में 30 से 40 मरीज आते हैं जिसमें अस्थमा के 8 से 10 मरीज रहते हैं। अस्थमा की तुलना में क्रानिक ओब्सट्रक्टिव पलमोनरी डिजीज़ (सीओपीडी) और ब्रांकायटिस के मरीज ज्यादा आते हैं। वैसे दो तिहाई से अधिक लोगों में अस्थमा बचपन से ही प्रारम्भ हो जाता है। इसमें बच्चों को खांसी होना, सांस फूलना, सीने में भारीपन, छींक आना व नाक बहना तथा बच्चे का सही शारीरिक विकास न हो पाना जैसे लक्षण होते हैं। शेष एक तिहाई लोगों में अस्थमा के लक्षण युवावस्था में प्रारम्भ होते हैं। इस तरह अस्थमा बचपन या युवावस्था में प्रारम्भ होने वाला रोग है। जब अस्थमा के कारक मरीज के सम्पर्क में आते हैं तो शरीर में मौजूद विभिन्न रसायनिक पदार्थ (जैसे हिस्टामीन) श्रावित होते हैं जिनसे सांस नलिकाएँ संकुचित हो जाती हैं और इनकी भीतरी दीवार में लाली और सूजन आ जाती है और उनमें बलगम बनने लगता है। इन सभी से अस्थमा के लक्षण पैदा होते हैं तथा बार-बार कारकों के सम्पर्क में आने से इन नलिकाओं में स्थायी रूप से बदलाव हो जाते हैं।
तो हो जायें सावधान –

  1. खांसी आना, रात में समस्या और गंभीर हो जाती है।
  2. सांस लेने में कठिनाई, जोकि दौरों के रूप में तकलीफ देती हो।
  3. सीने में कसाव/जकड़न।
  4. सीने से घरघराहट जैसी आवाज आना।
  5. गले से सीटी जैसी आवाज आना।
  6. बार-बार जुकाम होना।
    लापरवाही पड़ेगी भारी – अस्थमा के रोगी जो अपनी इनहेलर चिकित्सा ठीक से व नियमित रूप से नहीं लेते हैं, उनका अस्थमा अनियंत्रित रहता है। ऐसे मरीजों को कोरोना संक्रमण होने का खतरा बढ़ जाता है। ऐसे लोग जो अस्थमा के साथ-साथ कोरोना संक्रमित भी हैं, उनको कोरोना की गंभीर समस्याएँ हो जाती हैं। क्योंकि अस्थमा एक सांस की नलियों एवं फेफड़े की बीमारी है तथा कोरोना संक्रमण भी इन्हीं को प्रभावित करता है, जिससे ऐसे रोगियों में निमोनिया व एक्यूट रेस्पिरेटरी डिस्टैंस सिंड्रोम (ए.आर.डी.एस.) का खतरा बढ़ जाता है। ऐसे मरीजों का आक्सीजन स्तर भी तेजी से कम हो जाता है तथा वेंटिलेटर व आईसीयू में इलाज की आवश्यकता बढ़ जाती है।
    निदान व उपचार – अस्थमा का निदान अधिकतर लक्षणों के आधार पर व कुछ परीक्षण जैसे सीने में आला लगाकर, म्यूज़िकल साउंड (रांकाई) सुनकर तथा फेफड़े की कार्यक्षमता की जांच पीक इक्सपिरेटरी फ्लो रेट (पीईएफआर) व स्पाइरोमेट्री भी की जाती है। अन्य जाँचे जैसे खून की जांच, छाती एवं पैरानेजल साइनस का एक्सरे भी किया जाता है। अस्थमा के इलाज के लिए सांस की नली खोलने, एलर्जी कारकों के प्रति आपके शरीर प्रतिक्रिया कम करने, सांस नली की सूजन कम करने की दवाइयाँ मौजूद हैं। इसके लिए इनहेलर थेरेपी उपलब्ध हैं जोकि सबसे उत्तम चिकित्सा है। जिससे सांस के जरिये दवा सीधे फेफड़े में पहुँचती है और मरीज को तुरंत आराम मिल जाता है। इस थेरेपी के प्रति जो गलत धारणा है कि इसकी आदत पड़ जाती है इसे लोगों को दूर करना चाहिये। कम से कम डोज़ में दवा फेफड़े में जाकर काम करती है तथा इसका साइड इफेक्ट कम होता है। इनहेलर दो प्रकार के होते हैं –
    1- रिलीवर इनहेलर – ये जल्दी से काम करके सांस नलिकाओं कि मांसपेशियों का तनाव ढीला करते हैं और तुरन्त असर करते हैं। इनको सांस फूलने पर लेना होता है।
    2- कंट्रोलर इनहेलर – इस प्रकार के इनहेलर सांस नलियों में उत्तेजना और सूजन घटाकर उनको अधिक संवेदनशील बनने से रोकते हैं और गंभीर दौरे का खतरा कम करते हैं। डॉक्टर की सलाह पर इनको लक्षण न होने पर भी लगातार लेना चाहिए।
    इन बातों का रखे ध्यान-
    1- अस्थमा की दवा हमेशा अपने पास रखें और कंट्रोलर इनहेलर हमेशा समय से लें।
    2- सिगरेट, सिगार के धुयें से बचे तथा प्रमुख एलर्जन (जानवरों के बाल व पछियों के बाल) से बचें।
    3- फेफड़े मजबूत करने के लिए सांस सम्बंधी व्यायाम लगातार करें।
    4- खुद को ठंड से बचाकर रखें।
    5- यदि बलगम गाढ़ा हो गया है, खांसी, घरघराहट और सांस लेने में तकलीफ बढ़ जाये तो तुरन्त चिकित्सक से संपर्क करें।
    6- पालतू या अन्य जानवरों से दूरी बनाये रखें।
    7- घर में धूल न जमने दें।

डॉ. आरके शर्मा

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