कोरोना साइड इफेक्ट: आर्थिक तंगी से जूझ रहे वकील छोड़ने लगे वकालत

Corona Side effect: आर्थिक तंगी से जूझ रहे वकील छोड़ने लगे वकालत, कई ने कि गांव का रुख

झारखंड की न्यायपालिका करीब डेढ़ साल से वर्चुअल होकर जरूरी मामलों की सुनवाई करते हुए निष्पादन दर को बेहतर तो बना रही है, लेकिन अदालतों में बहस करने वाले वकीलों का हौसला अब टूटने लगा है। पिछले डेढ़ साल से आर्थिक तंगी की मार झेल रहे राज्य के करीब 150 वकीलों ने तो पेशा बदलने का निर्णय ले लिया है।

हालत यह है कि कई वकील वकालत का लाइसेंस निलंबित करा कर पेंशन लेने की सोच रहे हैं। कुछ वकीलों ने दूसरा व्यवसाय शुरू करने का निर्णय लिया है। वकीलों का कहना है कि फिजिकल कोर्ट कब से शुरू होगा, कितने दिन चलेगा, सब कुछ अभी अधर में है। ऐसे में अब वे वकालत के भरोसे नहीं नहीं रह सकते हैं। पिछले डेढ़ साल से वकीलों को सरकार, बार कौंसिल और दूसरे फोरम से पर्याप्त मदद नहीं मिल रही है। थोड़ी बहुत मदद स्थानीय बार संघों ने की है और निजी स्तर पर कुछ वकीलों ने जरूरमंदों को आर्थिक मदद की है।

दैनिक काम करने वालों की हालत दयनीय

सिविल कोर्ट और हाईकोर्ट में ऐसे कम ही वकील हैं, जिनकी प्रैक्टिस बेहतर है और उन्हें आर्थिक संकट का सामना नहीं करना पड़ रहा है। अधिकांश वकील हर दिन काम कर जो पैसा मिलता है, उसी पर निर्भर हैं। ऐसे वकीलों की संख्या भी अधिक है, जो विविध काम करते हैं। एफीडेविट, एग्रीमेंट और इस तरह के दूसरे काम कर गुजारा करते हैं। ऐसे वकीलों की हालत दयनीय हो गयी है। वर्चुअल मोड पर काम होने से मुवक्किल अदालत नहीं पहुंच रहे, जिस कारण इन वकीलों को काम नहीं मिल रहा है।

वकीलों को आश्वासन दिया गया

वकीलों को आर्थिक सहायता के लिए अपनी संस्थाओं से काफी उम्मीदें भी थीं, लेकिन जब आर्थिक मार पड़ी तो जिला बार एसोसिएशन और स्टेट बार काउंसिल ने उन्हें हर संभव मदद का भरोसा दिलाया, लेकिन मदद के नाम पर वकीलों को सिर्फ तारीख और आश्वासन ही मिला। रांची समेत धनबाद, हजारीबाग, देवघर और गुमला जिले के अधिक्ताओं ने अपने बार के अधिवक्ताओं की बिगड़ती हालत देखकर उनकी मदद के लिए खुद सहयोग राशि दी और जरूरतमंद वकीलों की हरसंभव मदद की।

शहर छोड़ वापस चले गए गांव

ग्रामीण इलाकों और छोटे शहरों के कई वकील प्रैक्टिस के लिए रांची और दूसरे बड़े शहर जाते हैं। शहर में वे किराए के घर में रहते हैं। हालात यह है कि अब उनके पास किराया देने और बच्चों की स्कूल फीस भरने तक के पैसे नहीं हैं। इस कारण सभी गांव और अपने शहर लौट गए हैं। वापस जाने के बाद अब वे नया पेशा शुरू करने की तैयारी में हैं।

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