सेना में 24 साल की सेवा के बाद भी मजदूरी करने को मजबूर जवान – पेंशन भी नसीब नहीं

ओडिशा के रहने वाले गोंड आदिवासी चंदूराम माझी सेना में हवलदार के रूप में देश की सेवा की जम्मू-कश्मीर से लेकर पश्चिम बंगाल और राजस्थान समेत कई हिस्सों में तैनात रहे। लेकिन माझी को शायद यह नहीं पता था कि जब वह सेना की वर्दी उतारेंगे तो उनको एक सुकून और आराम की जिंदगी नहीं मिलेगी। आज माझी के लिए अपने और बच्चों के जीवन यापन के लिए लेबर का काम करना पड़ रहा है। यहां तक कि सेना में सेवा दे चुके इस जवान ने जीवन यापन के लिए साइकिल रिपेयरिंग का काम भी किया।

ओडिशा के नुआपाड़ा जिले का परसखोल गांव के रहने वाले चंदूराम माझी की कहानी दिल को झकझोर देगी। 51 साल के चंदूराम 1988 में सेना ज्वाइन किए थे। आर्मी सर्विस क्रॉप से हवलदार तक का सफर करने वाले चंदूराम जैसे रिटायरमेंटके करीब पहुंच थे कि परिवार पर संकट के बादल मंडराने लगे थे। 

माझी कहते हैं कि ‘मैं अगस्त 2012 में सेवानिवृत्त होने वाला था और अपने पैतृक गांव में अपने परिवार के साथ शांतिपूर्ण समय बिताने के लिए उत्सुक था, इसी बीच मेरी पत्नी के कमर के नीचे किसी तरह का पक्षाघात सामने आया। मैंने उसे जम्मू-कश्मीर के अस्पताल में दिखाया जहां पर मेरी पोस्टिंग थी लेकिन एक महीने के इलाज के बाद मुझे बताया गया कि बीमारी वंशावली है और इसे ठीक नहीं किया जा सकता है। मैं उसे नुआपाड़ा में अपने गांव ले आया, जहां नवंबर 2012 में उसकी मौत हो गई।’ यही से माझी के बुरे दिन शुरू हो जाते हैं।

जब उन्होंने अपनी बीमार पत्नी के साथ-साथ एक नवजात शिशु सहित उनकी 4 बेटियों की देखभाल करने के लिए अपनी छुट्टी को और बढ़ाने की मांग की, तो उन्हें अनुमति नहीं मिली और ड्यूटी पर लौटने का निर्देश दिया गया। माझी पर दुखों का पहाड़ टूटा था तो वो ड्यूटी ज्वाइन नहीं किए। इस बीच उनकी रिटायरमेंट की डेट भी निकल जाती है। सेवानिवृत्ति की निर्धारित तिथि के बाद, उन्होंने सेना से अपनी सेवानिवृत्ति की बकाया राशि प्राप्त करने की कोशिश की और बैंगलोर के एएससी रिकॉर्ड रूम को कई पत्र लिखे। 

उन्हें जम्मू-कश्मीर में अपनी अंतिम इकाई में फिर से शामिल होने की सलाह दी गई थी, लेकिन जब वे वहां गए तो उन्हें बैंगलोर में रिकॉर्ड रूम में जाने के लिए कहा गया। माझी ने कहा कि इन सब से कुछ नहीं हुआ, उनको एक जगह से दूसरी जगह फुटबॉल की तरह लात मारी गई। ट्रेन से लगभग एक पखवाड़े तक यात्रा करने की वजह से बीमार हुआ और फिर थक हार कर कर घर आ गया।

माझी ने बताया कि कुछ समय बाद उन्हें फिर से जम्मू और कश्मीर में अपनी आखिरी इकाई में शामिल होने के लिए कहा गया। 2017 में वहां पहुंचने के बाद 89 दिनो तक क्वार्टरगार्ड के रूप में रखा गया और हवलदार से सिपाही के पद पर आसीन कर दिया गया। उन्होंने आगे बताया कि वहां लगभग एक साल तक रहने के बाद भी उन्हें कोई वेतन नहीं मिला जिसके बाद वो जनवरी 2019 में घर लौट आए।

माझी ने कहा कि उन्हें सेवानिवृत्ति की बकाया राशि मिलने की एक उम्मीद तब जगी जब पिछले साल दिसंबर में 5271 एएससी बटालियन पत्र लिखकर सभी दस्तावेज बैंगलोर में ASC रिकॉर्ड रूम भेजने की बात कही। गुडफुला ग्रामपंचायत के सरपंच हरि माझी ने कहा कि पूर्व आर्मीमैन ने अपने परिवार की आजीविका चलाने के लिए साइकिल और साइकिल रिपेयरिंग भी और चिकेन भी बेचे। सरपंच ने कहा कि कई दिनों तक उन्होंने दैनिक मजदूर के रूप में किया है, यहां तक कि कुछ दिन पहले उन्होंने आत्महत्या की भी कोशिश की थी।

हालांकि, माझी को इस साल की शुरुआत में थोड़ी राहत तब मिली जब सेना ने उनके बकाया 3.14 लाख रुपए दिए। लेकिन इससे उनका ज्यादा कुछ भला नहीं हो पाया क्योंकि पिछले कुछ वर्षों में माझी ने कर्ज भी ले रखा था। जिसको चूकाने में ही यह राशि समाप्त हो गई। माझी की चार बेटियां हैं। जिसमें एक 22 साल की, दूसरी 19 साल की तीसरी 17 साल की और चौथी 9 साल की है।

माझी ने कहा कि बेटियों को पढ़ाने के लिए पूरी कोशिश की है। स्कूल और कॉलेज जाती हैं। लेकिन अब अगर उनकी बकाया राशि नहीं मिलती तो परिवार को आगे ले जाना मुश्किल होगा। माझी ने कहा कि सरकार ने सभी गरीब परिवारों को सहायता का प्रावधान सुनिश्चित किया है, लेकिन किसी ऐसे व्यक्ति के लिए जिसने 24 से अधिक वर्षों तक देश के लिए संघर्ष किया है। वर्षों से कोई लाभ नहीं मिला।

इस बारे में नुआपाड़ा के जिला कलेक्टर स्वधा सिंह ने हिन्दुस्तान टाइम्स से बात करते हुए कहा कि उन्हें 2 दिन पहले इस मामले के बारे में पता चला और उन्होंने अपने अधिकारी से पूछा कि माझी को किस आधार पर भगौड़ा घोषित किया गया था। कलेक्टर ने कहा कि हम यह पता लगाने की कोशिश कर रहे हैं कि उन्हें सम्मानित तरीके से सेवा से रिटायर किया गया या नहीं। मैंने अपने अधिकारियों से कहा है कि वह अंतिम सेवारत इकाई के कमांडिंग ऑफिसर से पता करें। अगर कोई वास्तविक आधार है तो हम उसकी मदद करने की कोशिश करेंगे। हम कोशिश कर रहे हैं कि उनकी बेटियां स्कूल और कॉलेजों में अपनी पढ़ाई जारी रखें। कलेक्टर ने कहा कि जैसे ही हमें उनके रिकॉर्ड के बारे में पता चलता है हम जिला रेडक्रॉस फंड से उनको मदद प्रदान करेंगे।

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